हम बहुत खतरनाक दौर में जी रहे हैं। हमारे बच्चे इससे भी खतरनाक दौर में जिएंगे। उन्हें इसी हैवानियत के बीच अपने लिए जगह तलाशनी होगी। गुड़गांव में 7 साल के मासूम के साथ जो हुआ, स्कूल के कंडक्टर ने स्कूल के ही बाथरूम में जिस दरिंदगी से उसकी हत्या की.. सोचकर भी रूह कांप जाती है।
श्वांस नली काट दी, आहार नली काट दी.. वो बच्चा तड़पता रहा। इसी दर्द के साथ वो बाथरूम से बाहर भी आया। शर्म आती है.. खुद पर, अपने समाज पर। हम सभी मसरूफ हैं अपनी-अपनी धारा और अपनी-अपनी विचारधारा में, सोशल मीडिया की लड़ाइयों में। हम मशगूल हैं राजनीतिक वाद-प्रतिवाद में। हम वर्चुअल न्यू इंडिया गढ़ रहे हैं। हम वर्चुअली ही आलोचना कर रहे हैं और वर्चुअली ही प्रशस्ति पा रहे हैं। .. लेकिन अति बौद्धिकता का ये काला चश्मा हमें समाज की ओर देखने ही नहीं दे रहा। हम नहीं देख पा रहे हैं, हमारे सामाजिक मूल्य किस तेजी से गिर रहे हैं। हम नहीं देख पा रहे हैं जाने-अनजाने हम अपने दिमागों में कूड़ा समेट बैठे हैं। हम करप्ट लोग, गंदे विचारों के दास.. खुद को श्रेष्ठ मानकर राष्ट्र को धोखा दे रहे हैं। यही वजह है कि भारत तेजी से अपराध, हिंसा, नैतिक मूल्यों में ह्रास का शिकार हो रहा है।
फिर कहता हूं, सोशल मीडिया से हटकर अपने इर्द-गिर्द भी नजर डालिए। आपका बच्चा कहां है। आपका पड़ोसी कौन है। दूसरों से भी सरोकार रखिए। समाज को कुछ कॉन्ट्रिब्यूट कीजिए। दूसरों के साथ खड़े होने का साहस जुटाइए। मेल-मिलाप रखिए। बड़ों को सम्मान दीजिए। गलत को गलत बोलिए। सही को सही बोलिए। इससे सच को ताकत मिलेगी। कमजोर विचार शिथिल पड़ेंगे।
ये मासूम प्रद्युम्न फिर लौटकर नहीं आ सकता। लेकिन उस मासूम के परिवार का दर्द हम सबको महसूस करना चाहिए। भारत का ये दमकता 'कल' गंदे विचारों के आगे बाथरूम में कुचल दिया गया।
- निशांत बिसेन
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