
छत्तीसगढ़ की राजधानी से तक़रीबन 230 किलोमीटर की दूरी पर बसा एक शहर, कोरबा... आप इसे ऐसे भी जान सकते हैं कि यहां बालको का पॉवर प्लांट है। देश-दुनिया की तमाम हलचलों से बेख़बर ये शहर रोज़ की तरह अपनी ज़िंदगी जी रहा था। न्यूज़ चैनलों की सुर्खियों में बने रहने के लिए ना ही यहां कोई बच्चा गड्ढे में गिरा था और ना ही इस शहर के किसी बाशिंदे ने अपनी दिक्कतों से आजिज़ होकर इच्छा मृत्यु की गुहार लगाई थी, ना ही सुर्खियां बटोरने के लिए कोई आदम ख़ुदा बना हुआ था।
गरबे की धूम और राहुल महाजन के स्वयंवर से पटे मसाला बुलेटिनों के बीच शायद आप तक कोरबा में हुए हादसे की ख़बर आप तक पहुंची हो... शायद न भी पहुंची हो। दरअसल, कोरबा के बालको पॉवर प्लांट में एक बन रही चिमनी के गिर जाने से इसके मलबे में सैकड़ों लोग फंसे गए, 22 की तो मौत की पुष्टि भी हो चुकी... जबकि 25 इंजीनियरों समेत दर्जनों मज़दूर अब भी मौत के दामन से वापस आने के लिए जूझ रहे हैं। अगर वो ज़िंदा रहे तो ख़ुशकिस्मत वरना मौत के बाद वो एक लाख रुपए तो उनके घरवालों को मिल ही जाएंगे, जिसका ऐलान राज्य सरकार ने कर दिया है। दरअसल, हुआ कुछ यूं कि यहां 250 मीटर ऊंची चिमनी का निर्माण चल रहा था, चिमनी का काम 100 मीटर तक पूरा भी हो चुका था... अचानक क्या हुआ जो इतनी बड़ी चिमनी भरभराकर गिर पड़ी, और एक साथ कई घरों के चिराग बुझ गए ?
इतना बड़ा निर्माण, इतना बड़ा नाम... और इतनी ग़ैर संजीदगी ? ऐसा भी नहीं कि इस तरह का हादसा कोई पहली दफ़ा हुआ हो, किसी ने पिछले हादसों से सबक लेने ज़रूरत नहीं समझी, निर्माण में इस्तेमाल किए जा रहे सामानों का गुणवत्ता पर ख़रे न होना भी इस हादसे की बड़ी वजह रहा, वरना हम ‘हादसों की चिमनी’, ‘चिमनी में मौत’, ‘100 मीटर ऊंची मौत’ जैसी उपमाओं का इस्तेमाल न कर रहे होते।
सरकार ने भले ही न्यायिक जांच के आदेश दे दिए हैं, मुआवज़े का ऐलान भी कर दिया है... बेहतर होगा सरकार और प्रशासन इन हादसों की पुनरावृत्ति को रोकने की दिशा में क़दम उठाए।
बात हादसे की जगह पर मौजूद भीड़ की, बात उस भीड़ के ग़ुस्से की, बात आक्रोश की... ये ग़ुस्सा ऐसा भड़का कि एक की जान लेकर ही माना। अपने साथियों को दम तोड़ते देखकर कुछ मज़दूरों के निर्माण कंपनी के एक कर्मचारी को मारने को अब सही कहा जाए या ग़लत, ये फ़ैसला आप करें।
इस वक़्त ज़रूरत है, मरने वालों के परिवार वालों के साथ खड़े रहने की। ज़रूरत है मलबे में फंसे लोगों को फिर ज़िंदगी देने की... ताकि मौत का ये ग्राफ 22 से ऊपर ना बढ़ सके।