Tuesday, September 22, 2009

शुभकामनाएं


न्यूज़ रूम की आख़िरी क़तार में कुर्सी नीचे कर बैठना, और ये सोचना कि कोई देखे ना। की-बोर्ड पर तेज़-तेज़ उंगलियां चलाना, कुछ वक़्त खुद के लिए चुराना... किसी की, किसी के लिए या फिर किसी का नहीं... बल्कि लंबे समय से अपने दिमाग़ में चल रही बातों को ये सोच कर लिखना कि मैं काफ़ी दिनों बाद लिख रहा हूं, बड़ा सुकून देता है।
ज़्यादा वक़्त नहीं गुज़रा ब्लॉगिंग शुरू किए, सोचा था यहां रेगुलर रहूंगा... लेकिन तब से अब तक का ये फ़ासला तक़रीबन दो महीने का है। चलिए इन फ़ासलों को पाटा जाएं, दूरियों को नापा जाए।
सबसे पहले तो आपको त्योहारों की बहुत-बहुत शुभकामनाएं। इन दिनों गरबे पर थिरकते क़दमों के साथ पूरा देश झूम रहा है, मंदिरों में आस्था की छटा देखते ही बनती है, दशहरे की तैयारियां ज़ोरों पर है... और सेवइयों की ख़ुशबू अब तक माहौल ख़ुशनुमा किए हुए है। मैं इस वक़्त जहां हूं यानि छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर, यहां भी आस्था की बड़ी गौरवशाली परंपरा है, इस राज्य में ऐसी जगहों की कमी नहीं जहां पहुंच जाने पर आपको ना केवल आत्मिक शांति मिलती है बल्कि आप पहले से ज़्यादा आत्मविश्वास से भरे होते हैं। नवरात्र में इन दिनों अगर आप सड़कों पर देखें तो आपको लगातार ऐसे जत्थे नज़र आएंगे जो मातारानी के दरस को निकले होते हैं, नंगे पांव... पता नहीं कहां से आ रहे हैं, कहां जा रहे हैं... पूरे जोश के साथ। दुनिया तो घूमी नहीं, लेकिन सौ फ़ीसदी यक़ीन है... ये हिंदुस्तान में ही होता होगा। आस्था और श्रद्धा की अलख जगाते, माता के जयकारे लगाते, ये बताते-जताते कि वो माता के सबसे अच्छे बच्चे हैं... वो चले जा रहे हैं। उम्मीद है क़दम दर क़दम बढ़ती ये आस्था, देश और समाज को और मज़बूत करेगी।
हम हिंदुस्तानियों में एक ख़ासियत तो है, हम उत्सवों में ज़िंदगी तलाशते हैं। भले ही हम तमाम मुश्किलात से घिरे हों लेकिन मज़ाल है जो जश्न का एक मौक़ा भी हम गंवा दें। हो सकता है कई लोगों ने बड़ी दिक्कत में पिछला वक़्त गुज़ारा हो, कुछ ने नौकरियां गंवाई तो कुछ ने कारोबार में घाटा सहा... कुछ अच्छे वक़्त का इंतज़ार करते रहे तो हम जैसे कुछ पे-स्लिप के वज़नदार होने का। बीता वक़्त देश के लिए बहुत बेहतर नहीं रहा, बारिश... इसकी बेरुख़ी ने तो जैसे इकोनॉमी की चूले हिला दी, बादलों का रुठना ही तो रहा जो सरकार भी आने वाले वक़्त को लेकर फ़िक्रमंद दिखाई दी। लंबे समय बाद सादगी पर ज़ोर दिया जा रहा है, ख़र्चों पर लगाम लगाने की सारी तरक़ीबें भिड़ाई जा रही है। इस बीच जनता के चुने नुमाइंदों ने अपने बे सिर पैर के बयानों से खुद के चुनाव को चुनौती भी दी, उन्होंने जता दिया कि भीड़ से अलग दिखने की हसरत उनसे कुछ भी कहलवा सकती है। ख़र्चों में कटौती के लिए सारे जतन, सारे दिखावे ज़ोरों पर हैं। पहली बार पूर्व सांसदों के दिल्ली के सरकारी आवासों पर भी नज़र टेढ़ी हुई, जो सरकारी दामाद बने मलाई काट रहे थे। वैसे ये बात और है कि इसमें वो भी नप गए जो अब भी सांसद हैं।
इधर, चुनावों की तैयारियां भी ज़ोर-शोर से जारी है, नए दोस्तों की तलाश पूरी हो चुकी अब दुश्मनों पर कीचड़ उछालने की बारी है। दिग्गजों से लेकर कलावती तक चुनावी समर में कूदने की तैयारी में हैं। त्योहारी जलसे पूरे हों तो लोकतंत्र के इस जलसे का भी लुत्फ़ उठाया जाएगा।
फ़िलहाल तो शुभकामनाएं त्योहारों की, आपको... आपके परिवार को।।

और हां, अबकि दीपावली एक दीया किसी और के सूने आंगन में ज़रूर जलाएं... एक फुलझड़ी किसी मासूम के खाली हाथ में ज़रूर दें।

2 comments:

  1. लिखते रहिये पढने वाले बेताब हैं

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  2. आपकी बातों पर कान दिये हुए हैं सजगता से. :)

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