Wednesday, February 03, 2010

कौन सुनेगा हमें ?


सोचता हूं सियासत में हाथ आज़मा लूं, वैसे ग़लत नहीं सोचता... ग़लत इसलिए नहीं, क्योंकि सुना है इन दिनों राजनाति में भी टैलेंट हंट चल रहा है, राहुल तो युवाओं की नेतृत्व क्षमता को परख ही रहे हैं, उम्मीद है उधर गडकरी को भी देर सबेर युवा शक्ति का इल्म हो ही जाएगा.. और हम तो ठहरे पुराने क़ाबिल। भले ही उम्र 26 की हो, लेकिन जज़्बा कुछ कर गुज़रने का है... तो तय रहा कि अगला विधानसभा चुनाव लड़ेंगे हम। हम तो लड़ लेंगे लेकिन मुश्किल ये है कि कौन हम पर दांव लगाएगा, कांग्रेस, भाजपा या कोई और..?
हम मिडिल क्लास लोगों के साथ यहीं मुश्किल है, जहां जाते हैं एक नई शुरुआत, एक नई पहचान हासिल करने की चुनौती... ना ख़ुद को पेश करना करना आता है, और ना होता है कोई गॉडफॉदर... ना किसी नामचीन राजनीतिक ख़ानदान के वारिस होने का तमगा। डगर मुश्किल है, चुनौतियां कई हैं, राह कांटों भरी है... फिर भी हम तो ठहरे हम... इराद कर लिया है तो कर ही लिया है।
तो कहां थे हम...? कौन बनेगा हमारा गॉडफॉदर…? भई ये नया दौर है, और इस नए दौर में हम लोग आगे नहीं आएंगे तो कौन भला आएगा, गांव के गर्दों-गुबार से गुज़रकर कॉर्पोरेट हाउस का चेहरा बन चुके हम ही तो हक़ीक़त में वर्तमान हैं। हमें ही तो जूझना है... अपने हिस्से का संघर्ष तो कर ही लें।
वैसे भी,

हम ख़ुद तलाशते हैं मंज़िल की राहों को,
हम वो नहीं हैं जिनकों ज़माना बना गया।।

इस लेख में मैंने कई दफ़ा हम शब्द का इस्तेमाल किया है, इस हम में कई मैं शामिल हैं... कोई सुनेगा हमें।।

1 comment:

  1. उस हम में हमें भी शामिल कर लो भाई!!

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