Wednesday, November 10, 2010

एक चव्हाण गए, दूसरे आए

तो भईया, नप गए चव्हाण। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण की लंबे समय से टल रही विदाई आख़िरकार हो ही गई। उनकी जगह 7 रेस कोर्स के क़रीबी और गांधी परिवार के नज़दीकी माने जाने वाले पृथ्वीराज चव्हाण सूबे की कमान संभालेंगे। हम भूले नहीं है, किस तरह विलासराव देशमुख की विदाई के बाद महाराष्ट्र के लिए नए नेतृत्व के तौर पर साफ़ छवि के बेदाग़ और कद्दावर नेता की तलाश की जी रही थी। इसी सियासी कसरत की खोज थे, अशोक चव्हाण। जो राज्य की देशमुख सरकार में मंत्री तो थे ही साथ ही सूबे के रसूख़दार राजनीतिक खानदान के वारिस थे। लेकिन जिस तरह से आदर्श सोसायटी घोटाले में कथित तौर पर उनका नाम आया, उससे उनकी छवि पर बट्टा तो लगा ही साथ ही उनका पद भी चला गया।

                       सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस वाकई दाग़दार छवि के लोगों को बाहर का रास्ता दिखाना चाहती है, जैसा उसने चव्हाण और कलमाडी को बाहर कर किया या ये महज़ उस हंगामे को दबाने की क़वायद है, जो शीतकालीन सत्र में हो सकता है। यक़ीनन, कांग्रेस ने इस क़दम से नैतिक तौर पर बढ़त हासिल कर ली है और विपक्ष को मुद्दाविहीन कर दिया है। भ्रष्टाचार को लेकर विपक्ष का हथियार फिलहाल तो भोथरा ही दिखाई देता है। 2G स्पेक्ट्रम घोटाले को लेकर आरोपों से घिरे ए राजा को लेकर कांग्रेस की क्या रणनीति होती है, ये ग़ौर फ़रमाने वाली बात होगी। यहां तो मामला घर का था, लेकिन वहां गंठबंधन का लिहाज़ रखना होगा। कांग्रेस की अपनी मजबूरियां भी हैं, सो पता चल जाएगा कि क्या पार्टी वाकई दाग़ियों को बर्दाश्त करने के मूड में नहीं है?
                   बात महाराष्ट्र की करें, तो पृथ्वीराज चव्हाण बेहद मुश्किल वक़्त में राज्य की बागडोर संभाल रहे हैं। फिलहाल वे राज्यसभा से सांसद है। केंद्र की राजनीति  के साथ उनका लंबा संसदीय कार्यानुभव भी है, लेकिन महाराष्ट्र की राजनीति में उनका दख़ल न के बराबर रहा है। तिस पर राज्य में सत्ता में सहयोगी एनसीपी के नेता शरद पवार से भी उनके बहुत अच्छे ताल्लुक़ात नहीं हैं। लिहाज़ा देखना होगा किस तरह वे गठबंधन की गाड़ी को हांकते हैं? वैसे उनका कहना है कि वे केंद्र में रहकर काफ़ी क़रीब से गठबंधन सरकार को देख चुके हैं और जानते हैं इस धर्म का पालन कैसे किया जाना है? लेकिन चुनौतियां तो फिर भी हैं,  राज्य में किसानों की हालत बदतर है। गांवों में बिजली संकट है। कई पुराने और अनुभवी चेहरों को दरकिनार कर उन्हें सत्ता का ताज सौंपा जा रहा है। उम्मीद की जानी चाहिए कि वे ख़ुद और अपने आकाओं को सही साबित करने में कोई कसर बाक़ी नहीं रखेंगे।।

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