Friday, July 17, 2009

हर रंग मेरा...



जब से होश संभाला एक ही सवाल सुना कौन सा रंग पसंद है तुम्हे... कभी कहा लाल, कभी गुलाबी बताया, कभी तकलीफ़ में ये काला हो गया, कभी ग़ुस्से में ये लाल रहा। आप नहीं पूछेंगे कौन सा रंग पसंद है मुझे... पूछेंगे ना। मैं भी जवाब दूंगा... बदरंग हो गया हूं इन दिनों। बड़ा तल्ख़ सा जवाब दिया ना, ये तल्ख़ी यूं ही नहीं दोस्तों। आपको नहीं लगता कभी रंगों से भी पूछा जाए, क्या हम उन्हे पसंद हैं ? वैसे ना ही पूछे तो बेहतर है, अजी सही कहा हमने। हम तो हर रंग में रंगने का हुनर पाल बैठे है। अच्छा रंगों की भी कोई दुनिया होती होती होगी ना, उनमें भी कोई बड़ा होता होगा तो कोई छोटा, कोई अगड़ा होता होगा तो कोई पिछड़ा, कोई कहता होगा कि मैं बड़ा, दुबका पड़ा दूसरा कहता होगा, मैं भी कम नहीं। लाल कहता मुझे क्रांतियों ने स्वीकारा, सफेद कहता मुझे शांति ने आत्मसात किया, काला कहता मुझे शोक पर गर्व है, गुलाबी कहता मुझे इश्क़ पर नाज़ है। लड़ते तो ये भी होंगे... यक़ीनन लड़ते होंगे, झगड़ते होंगे रूठते होंगे, लेकिन मनाते भी होंगे। नहीं मनाते होंगे....? अरे मैं रंगों की बात कर रहा हूं, इंसानों की नहीं, यक़ीनी तौर पर ये एक दूसरे को मनाते होंगे। ‘नहीं मनाते होंगे’ बड़ा सवाल नहीं, मुद्दा तो मान जाना है। क्या इनमे ग़ैरत नहीं, अब भला ग़ैरत बीच में कहां से आ गई ?
ग़ैरत तो मुखौटा है, मसला तो रूहानी है।


सही कहा मैनें, आपने कोशिश ही नहीं की, मनाने की.... साहब, इस दफ़ा रंगों की नहीं इंसानों की बात कर रहा हूं। कभी कोशिश की बिछड़ों को वापस पाने की, नहीं ना ? कभी कोशिश की रूठों को मनाने की, नहीं ना ? आपको तो मलाल भी नहीं हुआ उनके दूर जाने का, है ना ? कभी सोचा आपने वो कहां हैं, किस तरह जी रहे हैं, हक़ीक़त के थपेड़ों ने कहीं उनके चेहरे पर शिकन तो नहीं छोड़ दी ? हालात की तपिश ने उनका लहज़ा तो नहीं बदल दिया ? जो भी हो... वो ख़ुश हों, बेहतर ज़िंदगी जी रहे हों। सच कहा साहब, वो ग़ुस्सा, वो तल्ख़ी पल भर की थी। तुम भी कैसे हो, तुम तो मेरे अपने थे, मेरे दोस्त थे, मेरे हमराज़ थे। तुम भी नहीं समझे, और मैं भी... तुम्हे समझा न सका। समझे... न सही, ग़ुस्सा... हां सही, नाराज़गी... जायज़ थी, लेकिन रिश्तों के दरक जाने का सबब तो पूछा होता। हक़ से कहा होता, ये सही नहीं। न तुमने पूछा, न हमने बताया। लेकिन हम तो एक रंग थे... मुझ बिन तुम अधूरे, तुम बिन मैं खाली-खाली।

3 comments:

  1. सही कहा...कोशिश ही कब कितनों ने की!

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  2. rang jo pasand ho wahi achha,bahut sunder lekh.

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