Wednesday, September 23, 2009

कोई इधर भी देखे




छत्तीसगढ़ की राजधानी से तक़रीबन 230 किलोमीटर की दूरी पर बसा एक शहर, कोरबा... आप इसे ऐसे भी जान सकते हैं कि यहां बालको का पॉवर प्लांट है। देश-दुनिया की तमाम हलचलों से बेख़बर ये शहर रोज़ की तरह अपनी ज़िंदगी जी रहा था। न्यूज़ चैनलों की सुर्खियों में बने रहने के लिए ना ही यहां कोई बच्चा गड्ढे में गिरा था और ना ही इस शहर के किसी बाशिंदे ने अपनी दिक्कतों से आजिज़ होकर इच्छा मृत्यु की गुहार लगाई थी, ना ही सुर्खियां बटोरने के लिए कोई आदम ख़ुदा बना हुआ था।
गरबे की धूम और राहुल महाजन के स्वयंवर से पटे मसाला बुलेटिनों के बीच शायद आप तक कोरबा में हुए हादसे की ख़बर आप तक पहुंची हो... शायद न भी पहुंची हो। दरअसल, कोरबा के बालको पॉवर प्लांट में एक बन रही चिमनी के गिर जाने से इसके मलबे में सैकड़ों लोग फंसे गए, 22 की तो मौत की पुष्टि भी हो चुकी... जबकि 25 इंजीनियरों समेत दर्जनों मज़दूर अब भी मौत के दामन से वापस आने के लिए जूझ रहे हैं। अगर वो ज़िंदा रहे तो ख़ुशकिस्मत वरना मौत के बाद वो एक लाख रुपए तो उनके घरवालों को मिल ही जाएंगे, जिसका ऐलान राज्य सरकार ने कर दिया है। दरअसल, हुआ कुछ यूं कि यहां 250 मीटर ऊंची चिमनी का निर्माण चल रहा था, चिमनी का काम 100 मीटर तक पूरा भी हो चुका था... अचानक क्या हुआ जो इतनी बड़ी चिमनी भरभराकर गिर पड़ी, और एक साथ कई घरों के चिराग बुझ गए ?
इतना बड़ा निर्माण, इतना बड़ा नाम... और इतनी ग़ैर संजीदगी ? ऐसा भी नहीं कि इस तरह का हादसा कोई पहली दफ़ा हुआ हो, किसी ने पिछले हादसों से सबक लेने ज़रूरत नहीं समझी, निर्माण में इस्तेमाल किए जा रहे सामानों का गुणवत्ता पर ख़रे न होना भी इस हादसे की बड़ी वजह रहा, वरना हम ‘हादसों की चिमनी’, ‘चिमनी में मौत’, ‘100 मीटर ऊंची मौत’ जैसी उपमाओं का इस्तेमाल न कर रहे होते।


सरकार ने भले ही न्यायिक जांच के आदेश दे दिए हैं, मुआवज़े का ऐलान भी कर दिया है... बेहतर होगा सरकार और प्रशासन इन हादसों की पुनरावृत्ति को रोकने की दिशा में क़दम उठाए।
बात हादसे की जगह पर मौजूद भीड़ की, बात उस भीड़ के ग़ुस्से की, बात आक्रोश की... ये ग़ुस्सा ऐसा भड़का कि एक की जान लेकर ही माना। अपने साथियों को दम तोड़ते देखकर कुछ मज़दूरों के निर्माण कंपनी के एक कर्मचारी को मारने को अब सही कहा जाए या ग़लत, ये फ़ैसला आप करें।
इस वक़्त ज़रूरत है, मरने वालों के परिवार वालों के साथ खड़े रहने की। ज़रूरत है मलबे में फंसे लोगों को फिर ज़िंदगी देने की... ताकि मौत का ये ग्राफ 22 से ऊपर ना बढ़ सके।

5 comments:

  1. जीवंत वर्णन...
    सोचने की जरूरत है सरकार को भी, हमें भी...
    वैसे एक मौन की परंपरा है किसे के गुजर जाने पर, लेकिन यहां खामोश रहने की नहीं बल्कि शोर करने की जरूरत है ताकि आगे हादसों पर लगाम
    लागाया जा सके।

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  2. निर्माण में इस्तेमाल किए जा रहे सामानों का गुणवत्ता पर ख़रे न होना यह एक कारण तो है ही लेकिन इसके मूल में तो भ्रष्टाचार ही है । जनता कब चेतेगी ?

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  3. बिसेन ji balaghat se hooo kiya ?

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  4. baat aisi hai nishant g ki ek metro pool delhi me v gira tha shayad jyada log nhi mare thea lekin tamsha hum aur aap yani hum media k logo ne mil kr khoob banaya tha.... sirf cimni girne ki baat nhi hai... kai ko maut mili aur pta nhi kitne maut se battar jindgi bitane ko majboor honge.... sale wo chinies to bach kr nikal liye ab pta nhi wo police k haath aye ya nhi lekin.... 6 mahine k baad adhe ghante ka ek segment chala skte hai ki... kisi ko paise ab tk nhi mile...kisi ek garib k ghar me cimni k neecha dab jane se roti par pe aafat a gayi.... stnig ka catch v lajawab hoga... chimno ki garmi..... kaisa rha...... luv u take care

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  5. nishant ji aapne to kah diya ki jarurat hai pidit parivaarwalo ke saath khade rahne ki,aap bhi jante hai ki yaha roj hi aise hadse hote hai.ham ya aap me se kitne log hai jo peedito ka saath dete hai.hum media wale hi ek baar issue ko uthkar chup ho jate hai,uske baad follow-up ka bhi nahi sochte hai.hadso se hum sabak nahi t.r.p lete hai.

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